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( २२६ ) छे.ते पाले छे, तेमा प्रथम क्षमा ते क्रोधनो जय. कोइ अनेक प्रकारे तिरस्कार करे, आकरां वचन कहे, कंइ चीज लइ जाय, नुकशान करे, पण क्षमा गुण आव्यो छे तेथी तेना उपर द्वेष थतोज नथी. कारण जे ते वस्तु बहार बने छ, तिरस्कार महारा नामने करे छे. वा, आ शरीर छ तेने करे छे. तो शरीर ते हु नहि. एम जाणी लीधुं छे. कइ चीज लइ जाय छे ते चीज महारी नथी, ते तो जड पदार्थ छे तेथी तेमां पण महारं कंइ नथी एम जाणवू ने जे जे बने छे ते ते कर्मना योगथी बने छ ते जोq छे. एमां कंइ राग द्वेष करवानुं कारण नथी. आ दशा थइ जवाथी क्षमा गुण आवे छे तेथी क्रोध थतो नथी. तेमज माननो जय करे छे. मान शी बाबतनुं करवू ? आ शरीर, धन, स्त्री इत्यादि पदार्थ कंइ महारा नथी एम निर्धार कर्यों के एटले शी बावतनुं मान थाय ? वली पोते ज्ञानवान छे ते विषे पोताना मनमा छ के महारा श्रा मानी शक्ति तो केवलज्ञाननी छे, ते हज प्रगट न थयु ने अबराइ गर्म्यु छे, ते छती वस्तु महारी प्रगट नथी थइ तो महारी लघुतानुं स्थानक छे. तो हवे हुं शी बाबतनुं मान करु ? आवी दशाओ बनी छे. तेथी मार्दव गुण आव्या छे. तेथी मानदशा सहज छूटी जाय छे. मान मू. कवानो विचार पण अधूराने करवानो छे. पूरा पुरुषने तो विचार करतो पडतो नथी कारण जे मान आवे तो मूकवानो विचार करे, पण श्रा. वी दशाथी मान आवतुंज नथी. हवे आर्जव ते मायानो त्याग ते माया जे कपटनी रचनापणुं सहज छूटी गयुं छे, मुनिए आत्मापणुं जाण्यु छे, तेमां सर्वे जड पदार्थ पर जाण्या छे तेमां केटलीएक प्रवृत्ति करे छे, ते मात्र निज स्वरूप अवरायलुं प्रगट करवा करे छे. तो हवे कपट शुं करवा करवु पडे १ चेलानी इच्छा नथी, श्रावकनी इच्छा नथी. धननी इच्छा नथी, आ महारा ने आ महारा नहि ! ए पण करवू नथी. फक्त पूर्ण ज्ञान नथी उत्पन्न थयुं त्यां सुधी पूर्ण ज्ञान उत्पन्न करवानो उद्यम करवो छे. तेमा निर्वाह करवो जोइए ते वस्तु मली तो ठीक, अने