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(२२. ) ते पण पोतानी आत्मदशामां रहीने भोगवे छे, पण रोग संबंधी कई पण चितवन करता नथी. जाणे छे जे रोगनी पीडा उत्पन्न थइ ले तेमां हुँ विकल्प करीश तो पाछां एवां कर्म बंधाशे, तो आत्माने कर्म थकी मू. काववाने प्रवर्तुं छं तेने बदले कर्मना बंधनमां पडीश. एम उपयोग बनी गयो छे. तेथीज पोतानी समभावनी धारा वा करे छे ने जे थाय छे ते जाणी ले छे, पण तेमां लीन थता नथी. कदापि पगमां घास प्रमुखना तृण कांकरा खुचे छे, कारण जे मुनिने जोडा पहेरवा नथी तेथी पगमा खूचे, वली पोते भाग्यशाली सुकोमल होय तो पण जरा तेमां खेद धरता नथी. मात्र कर्म स्वरूप जाण्युं छे तेथी ते संबंधीनो विचार ज चित्तमा आवतो नथी. कदापि थोडि विशुद्धिवालाने विचार आवे तो पाछो विचार करे छे के पगने खूचे छे, आत्मा अरुपीने कंइ खूचतुं न थी. माटे शा बदले हुँ विकल्प करूं ? एम करी समभावमा रहे छे. शरीरे मेल प्रमुख थाय छे. कारण जे शरीरनी विभूषा तथा शुश्रुषा कंद पण करवी नथी. तेथी शरीरे मेल थाय तो पण शरीरे ते हुं नहि. ए भाव बन्यो छे तेथी विकल्प थतो नथी. सत्कार परिषह ते मोटा मो. टा राजा आवीने बहुमान करे छे. अहो महात्मा! तमारा जेवा सत्पुरुष आ दुनियामां नथी. पांचे इंद्रियो वश करी छे जरा पण शरीरनी ममता नथी. केवल आत्मभाव तमे खरो जाण्यौ छे कोइ पण वखत त मे आत्मभावथी चूकता नथी. तमारा जेवा ज्ञानी आ जगतमां ना. तमारा जेवा उपकारी कोइ नथी. मने जे धर्म बतान्यो छे तेनो जे उपकार कर्यो छे ते पण महारा माथा उपर छे, आप साहेबजीनी जेटली भक्ति करूं ते ओछी छे. एवी अनेक प्रकारनी स्तुति प्रावीने करे पण जराए अहंकार करता नथी. मनमां विचारे छे जे हजु हुं पुद्गलदशामांथी तो खस्यो नथी. आ पुरुषो तो आवी महोटाइ आपे छे तो म
हारे पण जे जे पुद्गलदशामा उपयोग जाय छे ते पाछो वालवो जोइए - ज्ञानशानां बहु मान करे छे तेवी ज्ञान दशा हजु थइ नथी. माटे