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( २०९) मार्नु छ जे में घरेणां पहेयों छे, ते पहेरे छे, ते तो शरीर छे, हुं तो अ-. , रूपी कुं. ए ज्ञान नथी थयुं तेथी हुं मानी रह्यो छु. स्त्रीओनां मुख जोड़ मनमा मार्नु छु के अहो! शुं सुंदर रूप छे ? एनी साथे क्यारे भोग करुं ? केटलीएक वखत योग बने छे तो तेमां आनंदित थउं कुं. आ महारी केवी मूढता ? जे शरीर जड पदार्थ ते हुँ नहि. वली स्त्रीओन शरीर ते पण जड पदार्थ, ए बन्ने जड पदार्थना संयोगमा महारे | आनंद करवो? ते कंइ विचार न करता महारी मूढता वर्ती रही छे. ते केवी धिक्कारवा योग्य छ ? कोइ पण परसुखमां लीन थएँ, ते महारो धर्म.केम होय ? अहो! आq स्वरूप आणुं छु, तो पण अनादिना अ. भ्यासथी ए विषयादिकमांथी मूर्छितपणुं जतुं नथी, पूर्वे अनेक महा पुरुषो थया तेमणे पोताना श्रात्माने जडथी मुक्त करी निज स्वरूपमांजा नंदितपणुं श्रादयें. अहो ! तारामां कर्मनां आवरण केवू जोर करे के के जेथी.वीतरागनी वाणी स्वपरस्वरूपनी सांभली तो पण तेनी असर थती ज नथी! ने हज पण आत्मा अवराय एवी प्रवृत्ति कर्या करूं छु, पण हवे तो महारा अरूपी स्वरूपमा रहेq एज उत्तम छे. जेम कोइ गांडी माणस. जेम तेम बोले, जेम तेम चाले, कूदे, दोडे; पण खरं पोताने शं करवा योग्य छ १ ते जाणतो नथी, तेम हुं कर्मना संयोगथी मूढ थइ महारा भात्माना स्वरूपने भूली जइ जड जे पुद्गल तेनी प्रवृत्ति रात्री दिवस गांडानी माफक करी रह्यों छु. संसारमा अनेक प्रकारनां कर्चव्य बने छे, ते बघा महारां जाणीने कर्या करुं कुं. वली जडनां कर्त्तव्य करी अहंकारमा महालुं छु. अहो ! शुं अज्ञानता १ अनेक जीवाने अनेक प्रकारनां दुख देउं छु. धिक् धिक् अज्ञानदशाने! आ हुँ जड संगते शुं कृत्य करूं छु ? स्त्रीओनां महा दुर्गंधमय स्थानक जेनी विभाविक जीवो पण दुगंछा करे छे, एवा स्थानकोने जीव चुंबनादिक अनेक कृत्यो करे छे ! आ सर्वे कृत्यो आत्माना स्वरूपथी भिन्न छे. व्यापारादिकमा लुच्चाइ ठगाइ चोरी आदि अनेक प्रकारना जडनी सोबते