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(२०७ ) सहित छे. तेथी स्याहाद मार्ग कहेवाय छे बीजा धर्ममां एवो स्याहाद धर्म नथी तेथी ज मिथ्यात्व कयुं छे, ते छतां जैनधर्ममा रहि स्याद्वाद मार्गनुं ज्ञान थयु नहि तो आत्मानुं कार्य केम थाय? माटे जेम. सर्वज्ञे निश्चय व्यवहार बन्ने मार्ग कह्या छे तेज रीते प्रवृत्ति करवाथी निकटमा आत्मानी शुद्ध प्रवृत्ति थाय. माटे प्रथम अशुभ प्रवृचि छोडी शुभ, प्र. वृत्ति करवी. पछी जेम जेम आत्मा शुद्ध थाय, तेम तेम शुभ क्रिया छूटे. प्रश्नः-२४४ आत्मानी शुद्ध प्रवृत्ति शी रीते थाय ?
उत्तर:-सर्वज्ञे प्रात्मानुं स्वरूप बताव्यु छे ते जाणे पण आत्माना अनंत गुण छे ते सर्वे छद्मस्थपणे जाणी शकतो नथी. पण केटलाएक सवैज्ञना मुख्य गुण सिध्धांतथी जाणे के आत्मा अरूपी, अनंत ज्ञान, अ. नंत दर्शन, अनंत चारित्र, अनंत वीर्य, अव्याबाध, अगुरु, अलघु, अक्ष. य, आ गुण आत्माना छे. आथी विपरीत ते जडना गुण छे, रूप, गंध, रस, स्पर्शवालो ए चार मुख्य गुण जडना छे.. तीक्ष्ण बुध्धिवालाए आ बे स्वरूप चेतन तथा जडनां जाण्यां, तेथी ज विचार करे जे वर्ण, गंध, रस, स्पर्श रहित ते चेतन छे. ज्ञान शक्तिवान छे तेथी जाणे छे ते चेतन के सारे हवे हुँ महारा गुणमा वर्तु छ ? तेनो विचार करे, प्रथम श्रा महारुं शरीर देखाय छे, तेथी रूपी छे, श्वासोश्वास लेउं कुं तेनो स्प.
र्श, उष्ण अथवा शीतल थाय छे तो ते पण रूपी छे. शब्द बोलु छु ते . पण कानमां शब्दना पुद्गल अथडाय छे ते पण रूपी छे. आ शरीरनी अंदर रुधिर मांस छे, ते पण रुपी छे. वास्ते ए सर्व शरीर जड छे माटे ते महारु नहि. त्यारे छोकरानु स्वरुप देखाय छे, तेथी ते पण महारो न हि. त्यारे स्त्री पण महारी नहि. आ घर छे ते महारु नहि. बेसुं हुं ते हुँ नहि. चालु छुते हुँ नहि. वली आहारना पुद्गल तो रूपी छे ने महारो गुण अरूपी छे; तो महारे ग्रहण करवा योग्य केम होय १ .त्यारे भूख लागी कहुं छुते हुँ नहि, मने खाटुं लाग्यु, मने कषायुं लाग्युं, मने खाएं . तीखु लाग्यु. ए पण महारे करवा योग्य नथी. • एमां जे मुझाउंछु ते