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( १९९) रूप भावना तथा पूजा प्रतिक्रमण करवू ए तो बधारे विकल्प सहित रञ्जु, ते करवाथी शुं लाभ ?
उत्तरः-भावना विगरे जे जे करणी छे एमां पण अंशे अंशे निर्विकल्पदशा थाय छे. पूजानी वस्तु लाववा द्रव्य वपराय. ए द्रव्य उपरथी मूळ उतरे छे ते निर्विकल्पदशाना अंश प्रगटे छे. वली संसारनो राग छूटे सारे प्रभु उपर राग थाय छे त्यारे संसार उपरथी जेटलो जेंटलो राग छूटे ए निर्विकल्प अंशे छे. वली देव पूजामां वपराय छे ते वखत विषयमां वपरातो नथी ते विषयमा वापरवानी इच्छा छूटी ए निर्विकल्प अंश छे तेमज पडिक्कमणामां पण संसार उपरथी चित्त खसेडे छे, ने पुद्गलद्शाथीभाव उतारी व्रतो अंगीकार कयों छे तेम छतां पण कंइक चित्त लपटाइ जवाथी परभावनी प्रवृत्ति करवाथी दूषण लागे छे ते चित्त खात्मदशानुं थवाथी रुचता नथी तेथी परभाव वृचिनी निंदा करे के सारे ते निंदा करतां पुद्गल दशानुं अरुचकपणुं जे बने छे ने निज स्वभाव सन्मुख थाय छे ते पण निर्विकल्पदशाना अंश छे. तेमज पौषधमा अने भावना भावे छे ते भावनामां भाववानुं कारण एटलुज छ के पुद्गलदशा जे विभावदिशा विकल्पमय तेमां अनादिना अभ्यासथी म्हारापणुं मान्यु छ ते खशी जाय त्यारे विभाव वस्तु आत्माने सारी न लागे, ने अनादिनी सारी लागती हती ते कंइक मिथ्यात्व पुद्गल खसवाथी थाय छे. जेटला मिथ्यात्वना पुद्गल खश्या ते स्वात्मभावमा वर्त्तवाना भाव छे तेटला निविकल्प अंश प्राप्त थाय छे. माटे जे जे जीव धर्मसाधन आत्म सन्मुख थइने करे छे तेमा अंशे अंशे निर्विकल्पदशा प्राप्त थाय छे. तेमज ज्ञान जे शास्त्र वांचवां ए पण आत्मांनी स्वदशानो विचार करीए तो निश्चय नये आत्मा केवलज्ञानमय छे तेने भणवू शुं ? पण आत्मा केवलज्ञान'मय छे ते शास्त्र सांभलवाथी ने वांचवाथी जाणे छे. हवें इहां पंण अनादिकालनो जीवनो उपयोग शास्त्र सांभलवा वांचवानो आत्मा जाणवा अर्थे हतो नहि, पण ज्यारे आत्मानी सांथे आवरण करनार मिथ्यात्वना