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( १६३ ) मे छे. ए अधिकार समयसुंदरना प्रश्नमा छे. वली महानिसिथ सूत्रमा चोथा अध्ययनमा पाने ५ मे सुमतिनागलिनो आधिकार चाल्यो छे. तेमां पण एक मुनीराजे विजलीनो चमकारो थयो त्यारे वस्त्र श्रोढ्यु नहि.
तेथी त्यां कह्यु छ जे अग्निकायना जीवनी विराधना थइ एथी पण अग्निकाय सिद्ध थाय छे, वली भगवतीजीनी छापेली प्रतमा ५१८ मे पाने अग्नि सलगावनार महा आरंभी के होलवनार महा आरंभी ? त्यां अग्नि सलगावनार महा आरंभी कह्या छे. विगैरे अधिकार चाल्यो छे. त्यार पछी प्रश्न थयुं छे जे, जेम सचेतन अग्निकाय प्रकाश करे छे. तेम अचिच पुद्गलनी एवी प्रभा होय के नहीं! त्यारे भगवंते कडुं छे जे ज्यारे मुनी तेजुलेश्या मूके छे त्यारे ते अचित्त पुद्गलनो प्रकाश थाय छे एथी पण समजाय छे के अग्निनी प्रभा सचित्त कही. वली मुनि पाखी अतिचारमा तथा श्रावक पाखी अतिचारमा पण उजेइ आलोवे छे. वली श्राद्धजितकल्पमा उजेइनु प्रायश्चित कयुं छे. बृहतकल्पमां पण ज्यां दीवानो उद्योत होय त्यां कारणे एक वे दिवस रहे ने वधारे रहे तो प्रायश्चित कह्यु. वली टीकामां विस्तारे अधिकार छे के अणसण कयु होय तो दीवो राखे. आवा कारणे राखवानी तो मरजादा छे. पण ते शिवाय तो निषेध छे; तो पछी पौषधमां श्रावक भणवा सारु राखे ए तो संभवतुं नथी. कारण जे 'समणोइव सावओ' एवो पाठ छे माटे जेम साधु रात्रे दीवो राखता नथी, तेम श्रावक पण राखे नहीं. एम अमारं समज छे. उजेइ सारु वस्त्र ओढवानो अधिकार वृंदारवृत्तिमां पाने २८ मे छ। वली सेनप्रश्नमा प्रश्न १८ मे पाने ६४ मे दीवानी उजेइन प्रश्न छ तेमा पण काउसगनियूक्तिनी साख आपी छे. ए सर्वे अधिकार जोतां दीवो राखवो जोग्य लागतो नथी.
प्रश्नः-१०१ श्रावक देरासरनुं द्रव्य व्याजे राखे तो केम ? तथा पूजाना काममा वापरे तो केम ? उत्तरः-हालना वखतमां श्रावकोने देराना कारभारी जबराइथी व्याजे