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उत्तर:-श्रीभगवतजीनी छापेली टीकामां तथा बालाबोधमा पाने ७० मे छे. तेर प्रकारनां अंतर कह्यां छे. ते कारणे मुनी शंका करे तो कंखामोहिनी बांधे, वास्ते जिन वचनमा शंका करवी नहीं. कंखा शब्दे मिथ्यातमोहिनी कही छे. माटे जेम बने तेम परमात्माना वचन उपर दृढ रहे. प्रश्नः-९२ भुवनपति प्रमुख नीचेना देवता देवलोकमा जाय के नहीं ? उत्तरः-भगवतीजीनी छापेली प्रतमां पाने २५६ मे चमरेंद्र गयानो अधिकार छे, पण तेमां एटलुं विशेष छे के अरिहंतनुं, अरिहंतना चैत्यर्नु एटले प्रतिमाजी, वा, साधुनुं शरणुं करी जाय तो जवाय ते शिवाय जवाय नहि.
प्रश्नः-९३ तामली तपासे साठ हजार वरस सुधी तपश्या करी फोगट गइ कहे छे ते केम ?
उत्तरः-भगवतीजीमा पाने २३२ मे तामली तापसनो अधिकार छ त्यां अल्प फल कयुं छे. पण कंइ पाम्या नहि एम तो नथी. वली इशान इंद्र थया ने अल्प फल ते मुक्तिनी अपेक्षाए कडुं छे, कारण ने एवी तपश्या समकित सहित करी हती तो घणी निर्जरा थात; पण तेन थइ ते अपेक्षाए अल्प छे. ऋद्धि तो घणी पाम्या छे. वली थानक पण एवं पाम्या के समकित पाम्या. प्रश्न: ९४ तुंगीआ नगरीना श्रावकनो अधिकार क्या है ?
उत्तरः-भगवतीजीनी प्रतमा पाने १९१ मे अधिकार श्रवण प्रमुखना फलनो अधिकार छे त्यां तुंगीयानगरीना श्रावक- स्वरूप छे. प्रश्रः-९५ अभवी क्यां सुधी भणे ?
उत्तरः-नंदीसूत्रनी छापेली प्रतमा पाने ३९९ मे साडानव पूर्व सुधी भणे एम कयुं छे; पण श्रद्धा नहीं तेथी आत्मानुं काम थाय नहीं.
प्रश्नः-९६ श्रावकनां व्रत लीघा शिवाय वीजा परचूरण नियम कर. वानी मरजादा छे के नहि