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(१३५) छे, ते गुरुना चरण उपर मूकीए छीए एम भाववं. स्थापना करती वखते हाथ स्थापना तरफ राखीए छे तेनो हेतु जे आ स्थापनाचार्य स्थापुं छु, वंदन करती वखते मुहपत्तिए बे हाथनां दश आंगलां अडाडी मस्तके अडाडवां. तेनो हेतु जे गुरुना पगनी रज माथे चढावं . ए सर्व विनय छे. ने वीतरागनो धर्म विनयमय छे, वास्ते जेम बने तेम म्होटानो विनय करवो. विनयथी ज्ञान दर्शन चारित्रनी वृद्धि थाय छे.
प्रश्नः-४२ प्रतिक्रमण कइ वखते कर ?
उत्तरः-बे संध्याये प्रतिक्रमण करवू. सांज- प्रतिक्रमण करतां अर्थों सूर्य बहार होय ते वखते वंदितु कहेवू ए रीत छे, ने ते करतां मोड़ें वहेलु करवानुं प्रायश्चित्त ज्ञानविमलसूरिनी करेली सझ्झायमां कहुं छे, वली कोइ कारणसर अपवादे तो, देवसी पडिकमणुं वहेलु करे तो बपोरना बार वाग्या पछी, ने मोडुं करे तो रात्रीना बार वाग्या सुधी. राइ पडिक्कमणुं वहेलु करे तो रात्रीना बार वाग्या पछी, ने मोडु करे तो बपोरना बार वाग्या सुधी. ए रीते पडिक्कमणाहतुगार्भतमां कडं छे. तेनुं कारण ए छे जे कंइ काममा धुंचवायो तो ए बदले पडिकमणुं रहे नहि, ने जीवनो स्वभाव एवो छ जे एक दिवस त्रूटक पडयुं तो पछी घणा दिवस पडिक्कमणुं जाय ने प्रमाद वधी जाय. माटे अपवादे श्रा काल बतान्यो, पण बनतां सुधी काले ज करवु ए मर्यादा छे. हरिभद्रसूरि महाराजे पंचाशकमां कयुं छे जे-काले खेती करे तो सफल थाय, पण अकाले खेती करे ते सफल थाय नहि. तेम अकाले क्रिया करवी ते तेवी छे. वास्ते बनतां सुधी जे जे धर्मकरणी प्रभुए कही छे, ते ते : अवसरे करवी.
प्रश्नः-७३ पडिक्कमणामां छ आवश्यकमां कया कया आचारनी शुद्धि थाय छे. ?
उत्तरः-सामायिक आवश्यके तथा प्रतिक्रमण आवश्यक तथा काउसग्ग आवश्यके चारित्राचारनी विशुद्धि थाय. केम के सामायिक लेवाथी
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