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(१३३ ) कारण जे अनशन करनार मुनिने कोइ देवता उपसर्ग करे नहि. तेमज इहां पण ज्ञान दर्शन चारित्रे करी मोक्षमार्गना साधक पुरुषनां दुरित हरवाने कहेवू छे. ते आवा मुनिनी भक्ति छ, वास्ते करवा योग्य छे. पछी मंगलार्थे नवकार भणी मुहपचि पडिलेहवी. ने छठा आवश्यकमा पञ्चख्खाण करवू छे ते सारु गुरुने वंदन करवू. हवे अवसर थइ जवा सारु पख्खाण पहेलु करयुं छे, एटले फरी करवू नथी. ए छ आवश्वक थइ रह्या तेनी प्रसन्नता थइ तेथी देवनी स्तुति रूप नमोस्तुवईमानाय, नमुथ्थुणं स्तवन कहे. पछी १७० जिनने वांदवा रूप वरकनक कहेवा. स्त्रीयोने पूर्वनु भणवानी मना छे. तेथी स्त्रीओ संसारदावा कहे. पछी भगवान् प्रमुख वांदे. पछी अढीद्दीपना सर्व मुनिने नमस्कार करवा अडाइजेसु कहेवा, पछी कंइ दिवस संबंधी पाप रघु होय ते सारु देवसि प्रायश्चित्तनो चार लोगस्सनो काउसग्ग करवो. काउसग्ग करी लोगस्स कही सझ्झायनो आदेश लइ सझ्झाय ध्यान करवू. इहां सुधीना हेतु त्यां दर्शाव्या छे ते लख्या छे. राइपडिक्कमणामां पहेलो कुसुमिण दुसुमिण उड्डावणियं राइय पाअच्छित्तविसोहणत्थंनो चार लोगस्सनो काउसग्ग क. रखो शरु थाय छे. तेनो हेतु एवो छे जे स्वप्नना दोष निवारण करवाने. वली जो निद्रामां, स्वप्नमां चोथावतादिकमां दूषण लाग्यु होय तो १०८ श्वासोश्वासनो काउसग्ग करवो कह्यो छे. माटे सागर वर गंभीरा सुधी लोगस्स गणवो. पछी भरहेसरनी सझाय कहेवामां आवे छे, ते उत्तम पुरुषना नाम स्मरण करवा माटे छे. तथा काउसग्ग एक लोगस्सनो चा. रित्र विशुद्धि अर्थे रात्रिए दूषण थोडा लाग्यां होय तेथी करवो. पछी दर्शननी विशुद्धि सारु एक लोगस्सनो काउसग्ग तथा ज्ञाननी विशुद्धि सारु आठ गाथानो काउसग्ग करवो ने तेमां जे व्रतमां दूषण लाग्यां होय, ते संभारी काढवां. आ काउसग्गो वंदितु कहेता पहेलां करवाना आवे छे तेनुं कारण एटलुंज छे जे पहेली ए क्रिया थाय तो निद्रा वधारे मुक्त थाय, तो पाप बरा बर झालोववामां आवे, माटे राइ पडिकमणामां पहेलो आवे