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(१२७) रुपक ज छे तो ते जरुर सेववा योग्य छे.
४. प्रश्न:-साधुजी महाराज पासे दीक्षा लेवा श्रावे तो तेना माता पितानी आज्ञा लइ दीक्षा आपे के केम ?
उत्तरः-माता पितानी श्राज्ञाथी दीक्षा लेवानी मर्यादा छे, पण ते म. यादा अष्ठकजीमा हरिभद्रसूरि महाराजे दर्शावी छे तेनो सार नाचे मुजब छे-दीक्षा लेनार पोताना माता पीताने समजावीने आज्ञा मागे, ने माता पिता आज्ञा आपे तो ते उत्तम छे; पण मातादिक आज्ञा न आपे तो पोते साधुनो वेष पहेरी घरमा रहे ने आज्ञा मागे, एम केटलाएक दिवस घरमां रहे. तो पण आज्ञा न आपे त्यार पछी घरमाथी चाली नीकले. गुरु पासे जइ संयम ले. ए विषे त्यां एवो पण तर्क करयो छे जे एवी रीते चाल्यो जाय त्यारे पाछल माता पिता दुःखी थाय तेनो दोष दीक्षा लेनारने लागे. ए तर्कनो जवाब एवो पाप्यो छे जे कोइना मात पिता रोगी छे ने साथे पुत्र पण छे ने कइ गाम जता होय एवामा घणी मांदगी थइ जवाथी पुत्र औषध लेवा जाय ने कदापि माता पितादिक. मांथी कोइनु मरण थाय तो तेनो दोष पुत्रने लागतो नथी. तेम माता पिताने समजाव्या छतां आज्ञा आपता नथी, तो ते दीक्षा लेनारने दोष नथी. पुत्र जेम औषध लेवा गयो ने पिता मरण पान्या तो दोष नथी, तेम ए पुत्र जाणे छे के दीक्षा लइ ज्ञान भणीने आवीने माता पिताने समजावीश. एवी भावनाथी जाय छे तेने दोष नथी. एवी रीतनो भधिकार अष्टकजीमा पाने ९२ मे पचीशमा अष्टकजीमा छे. तथा पंच वस्तुमा पण दीक्षानो अधिकार घणो चाल्यो छे लो घणा तर्क करया छे, यो पण एमज कहलुं छे. एक प्रश्न एवं छे जे माता पिता वृद्धछे ने पुत्र दीक्षा ले तो एना दयाना प्रणाम शी रीते रह्या ? ते विशे यां जवाब
आप्यो छे के दीक्षा लेनारने जगतमा जेटला जीव छे ते बधा साथे अ. नंतोकाल गयो. तेथी माता पितानो संबंध बन्यो छे. सारे एक माता पितानी दया पाले के भवोभवना माता पितानी दया पाले १ एना चित्तमां