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आहारादिक बनाववा पण नथी. गृहस्थने त्यांथी जे वखत जे चीज मली, सेथी संतोष करी राजी दिलगीर थता नथी. एवी रीते त्रेवीश विषय त्याग थया छे. कवाय ते बार तो गया छे अने चार जे संज्वलना रह्या छे ते पातला थया छे. विकथा ते राजकथा ते राजा संबंधी वात करवी. देशकथा ते देशोनी वातो करवी. भक्तकथा ते भोजननी कथा करवी. स्त्रीकथा ते स्त्री संबंधी वातो करवी. ए चार विकथानो त्याग थइ जाय छे. निद्राजेनुं रूप मोहनीकर्ममा कयुं छे ते निद्रा त्रण-निद्रानिद्रा, प्रचला प्रचंला, थीणहि ए त्रणे जाय छे. ए रीते पांचे प्रमादनो नाश थवाथी अप्रमाद गुणठाणुं कहेवाय छे. ए गुणस्थानमां श्रात्मविशुद्धि वधारे थाय छे. पण छठा तथा सातमा गुणस्थाननो काल अंतरमुहूर्त्तनो छे ते वली पडीने छठे जाय छे. वली सातमे आवे छे अध्यवसायनो फेरफार थया करे छे तेम गुणस्थान फरे छे. तेमां पण सातमा गुणस्थान- अंतर्मुहूर्त लघु छ ने छठा गुणस्थान- अंतर्मुहूर्त म्होटुं तेमां एटलो अंतर पडे छे के, आखा आउखा सुधीमां सातमे रह्यानो काल एकठो करीए तो उण बे घडी करतां वधे नहि. ने छठा गुणस्थाननो बाकी सर्व काल थाय. ए अधिकार भगवती सूत्रनी टीकामां छापेली प्रतमा पाने २७२ में छे. अप्रमाद गुणस्थाननो विशेष अधिकार कर्मग्रंथथी जाणवो. ए विशुद्धभावन स्थानक छे. ए गुणस्थानमा धर्मध्यानमां वधारे काल जाय छे. ते धर्मध्यान चार प्रकारे छे.
पहेलो पायो आज्ञाविचय ते-परमात्मानी आज्ञानुं ध्यान करे. परमात्मानी आज्ञा केवी छे १ अविच्छिन्न छे. वली परमात्मानां वचन छे ते निराबाध छ; कोइ प्रकारनो दोष नथी. आत्मानी सत्ता अनंत ज्ञानमय, अनंत दर्शनमय, अनंत चारित्रमय, अनंत तपमय, अनंत उपयोगमय छ. ए आत्मानी सचा छे ते स्वरूपमा रहेवू, ए आज्ञा छे. एवी रीते पहेला पायामां ध्यान करे. बीजो पायो अपायविचय तेमां ध्यान करे जे अनंत ज्ञानमय आत्मा