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संबंध छे, ते आश्रव श्राववानां कारण छ. समये समये पुगलिक पदार्थ उपर राग करे छे तेथी कर्म बांध्या करे छे. कर्म बांधवानां बीजभूत राग द्वेषनी प्रकृति छे ते प्रकृति थवाना कारणभूत शरीर, पुत्र, स्त्री, धन, मंकान, अहंकार ममकार ए पदार्थ छे. माटे हे चेतन ! ए हारे करवा योग्य नथी. फरी फरीने आ मनुष्यं जन्म मंलवानो नथी. भाग्योदये आ मनुष्य जन्म मल्यो छे, माटे जेम बने तेम आश्रवनी प्रवृत्तिं बंध कर. जेथी कर्मबंध थाय नहि. ए मिथ्यात्वादिकनो विचार प्रश्न ५१ ना ज. वाबमां छे त्यांथी जोइने भावq.
संवरभावना भावें जे समये समये कर्म आवे छे ते समभावे रोकाय मार्ट हे चेतन ! तुं समभावमा रहे. समभावना श्राववानां कारण सत्तावन छे. ते सत्तावन सेव्याथी संवरभाव थशे. पाच समिति, त्रणं गुप्ति, बावीश परीसह, दशविध यतिधर्म, बार भावना, पांच चारित्र ए सत्तावन सेव्या थी श्रावतां कर्म रोकाय छे. माटे हे चेतन ! तुं संवरनां कारण अंगीकार कर के, जेथी आवतां कर्म रोकायं, ज्यां सुधी संवरभावना नहिं करे यां सुधी आत्मा कार्य थवानुं नथी, ने भव फेरो पण मटवानो नथी. माटे हरेक प्रकारे संवर भाव कर. एवी रीते संवरभावना भावे. '
निर्जराभावना ते-पूर्वना कर्मोनी निर्जरा करवा भावे, अकामनिर्जरा तो समये समये जे जे कर्म भोगवाय छे, ते ते समय बने छे, पण तेमां
आत्मा निरावरण थतो नथी. कारण जे निरावरण आत्मा करवानी इच्छा 'नथी. स्वपर उपयोग नथी. परभावमा आसक्तता छे तेथी पाछा नवा कर्म बंधाय छे.. माटे हे चेतन ! तुं कर्मक्षय करवा उजमाल थइ, जें जे कर्म उदय थाय ते समभावे भोगवे तो, सकाम निर्जरा थाय. बली उदय न. थी थयां तेनें क्षय करवाने सारु बार प्रकारे इच्छारोध रूप समभावे तप कर के, तेथी कर्मक्षय थाय. अनशनं ते नवकारशी, पोरंसी, साढपोरसी, पुरीम8, अवठ्ठ, एकासगुं, बेसj, नीवी, आयंबिल, उपवास, छठ, अठमादि तपश्चर्या करुं के तेथी म्हारां कर्म निर्जरे ने आत्मा निर्मल थाये,