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प्रत्ये अ सूरियावत्ते,
सूरियावरणेत्ति । उत्तरे य दिसाई य,
वडेंसे इन सोलसे ॥
लोकमध्य, १०. लोकनामि. ११. अर्थ. १२. सूर्यावर्त, १३. सूर्यावरण, १४. उत्तर, १५. दिशादि और १६. अवतंस ।
४. पासस्स गं अरहतो पुरिसादाणी
यस्स सोलस समणसाहस्सीमो उक्कोसिमा समण-संपदा होत्या ।
४. पुरुषादानीय अहंद पार्श्व की सोलह हजार श्रमणों की उत्कृष्ट श्रमणसम्पदा थी।
५. पायप्पवायस्स णं पुवस्स सोलस वत्सू पण्णता। .
५. प्रात्म-प्रवाद पूर्व के वस्तु/अंधिकार
सोलह प्राप्त है।
६. चमरबलीणं प्रोवारियालेणे सोलस
जोयणसहस्साइं पायामविखंभेणं पण्णते। ।
६. चमर-वली का अवतारिकालयन
सोलह हजार योजन आयाम-विष्कम्भक/विस्तृत प्रजप्त है।
७. लवणे णं समुद्दे सोलस जोयण
सहस्साई उस्सेहपरिवुडीए पण्णते।
७. लवण-समुद्र में उत्सेध/उफान की
वृद्धि सोलह हजार योजन प्रजप्त है।
८. इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए
प्रत्येगइयाणं नेरइयाणं सोलस पलिनोवमाइं ठिई पण्णता।
८. इस रत्नप्रभा पृथिवी पर कुछेक नरयिकों की सोलह पत्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
६. पंचमाए पुढवीए प्रत्येगइयाणं
नेरइयाणं सोलस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
६. पांचवीं पृथिवी [ धूमप्रभा ] पर
कुछेक नैरयिकों की सोलह मागरोपम स्थिति प्राप्त है।
१०. असुरकुमाराणं देवाणं प्रत्येगइ-
याणं सोलस पलिनोवमाई ठिई पण्णत्ता।
१०. कुछेक असुरकुमार देवों की मोलह
पल्योपम स्थिति प्राप्त है।
११. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु प्रत्येगइ-
याणं देवाणं सोलस पलिनोवमाई ठिई पण्णता।
११. माघम-ईशान कल्प में फुदक देवों
की मोलह पन्योपम स्थिति प्राप्त
समवाय सत्तं
ममवाय