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दसमो समवाश्रो
१. दसविहे समरण धम्मे पण्णत्ते,
तं जहा
खंती मुत्ती प्रज्जवे मद्दवे लाघवे सच्चे संजमे तवे चियाए वंभचेरवासे ।
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२. दस चित्तसमा हिट्ठारणा पण्णत्ता,
तं जहा
धर्मांचा वा से श्रसमुष्ण्णपुव्वा समुप्पज्जिज्जा, सव्वं धम्मं जात्तिए ।
सुमिरणदंसर वा से असमुपपणपुव्वे समुप्पज्जिज्जा, अहातचं सुमिणं पात्तिए ।
सणिनारणे वा से समुप्पणपुवे समुप्पज्जिज्जा, पुब्बभवे सुमरित्तए ।
देवदसरणे वा से श्रसमुध्वण्णपुब्वे समुप्पज्जिज्जा, दिव्वं देविडि दिव्वं देवजुई दिव्वं देवाणुभावं पालित्तए ।
श्रोहिना वा से असमुप्पण्णपुब्वे समुप्पज्जिज्जा, श्रोहिणा लोगं जात्तिए ।
श्रो हिदंसर वा से समुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जिज्जा, श्रोहिणा लोगं पातित्तए ।
समवाय-सुत्तं
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दसवां समवाय
१. श्रमण - धर्मं दस प्रकार का प्रज्ञप्त है । जैसे किशान्ति / क्षमा, मुक्ति, प्रर्जव / ऋजुता, मार्दव / मृदुता, लाघव / लघुता, सत्य, संयम, तप, त्याग और ब्रह्मचर्य - वास ।
२. चित्त- ममावि स्थान दस प्रज्ञप्त हैं । जैसे कि
धर्मचिन्तन वह है, जो पूर्व में असमुत्पन्न सर्व धर्म को जानने के लिए समुत्पन्न होता है ।
स्वप्न-दर्शन वह है, जो पूर्व में अममुत्पन्न यथातथ्य को स्वप्न में देखने के लिए समुत्पन्न होता है । संजी-जान वह है, जो पूर्व में असमुत्पन्न पूर्व भव का स्मरण करने से समुत्पन्न होता है ।
देव-दर्शन वह है, जो पूर्व में असमुत्पन्न दिव्य देवधि, दिव्य देव-द्युति, दिव्य देवानुभाव को देखने के लिए समुत्पन्न होता है ।
अवि-ज्ञान वह है, जो पूर्व में श्रममुत्पन्न अवधि से लोक को जानने के लिए समुत्पन्न होता है । अवधिदर्शन वह है, जो अवधि से लोक को देखने के लिए समुत्पन्न होता है ।
समवाय- १०