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छट्ठो समवायो
छठा समवाय
१. छल्लेसा पण्णता, तं जहा
कण्हलेसा नीललेसा काउलेसा तेउलेसा पम्हलेसा सुक्कलेसा।
१. लेश्या/चित्तवृत्ति छह प्रजप्त हैं ।
जैसे किकृष्ण-लेश्या / संक्लेश-वृत्ति, नीललेश्या/रौद्र-वृत्ति, कापोत-लेश्या/ आर्त-वृत्ति, तेजो-लेश्या/परोपकारवृत्ति, पद्म-लेश्या/विवेक-वृत्ति, शुक्ललेश्या/निर्मल-वृत्ति ।
२. छज्जीवनिकाया पण्णता, त
जहापुढवीकाए पाउकाए तेउकाए वाउकाए वणस्सइकाए तसकाए।
२. जीव के छह निकाय/संकाय प्रज्ञप्त हैं। जैसे किपृथिवीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय/
गतिशील ।
३. छविहे बाहिरे तवोकम्मे पण्णत्ते,
तं जहाअरणसणे प्रोमोदरिया वित्तिसंखेवो रसपरिच्चाओ कायकिलेसो संलीगया ।
३. वाह्य तपोकर्म छह प्रज्ञप्त हैं ।
जैसे किअनशन/उपवास, ऊनोदरिका/अल्पभोजन, वृत्ति-संक्षेप/शारीरिक वृत्तिनिरोध, रस-परित्याग/स्वाद-विजय, कायक्लेश / सहिष्णुता, संलीनता/ इन्द्रिय-गोपन ।
४. छविहे अभितरे तवोकम्मे पण्णते, तं जहापायच्छित्तं विरणो वेयावच्चं सज्झानो झाणं उस्सग्गो।
४. आभ्यन्तर-तप छह प्रज्ञप्त हैं ।
जैसे किप्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य/सेवा, स्वाध्याय, ध्यान, व्युत्सर्ग/कायोत्सर्ग।
५.छ छाउमत्थिया समुग्धाया
पण्णत्ता, तं जहावेयणासमुग्घाए फसायसमुग्धाए मारणंतियसमुग्याए वेब्वियसमुग्घाए तेयसमुग्घाए प्राहारसमुग्याए।
५. छानस्थिक/सांसारिक समुद्घात/
प्रदेश-विस्तार छह प्रज्ञप्त हैं । जैसे किवेदना-समुद्घात, कषाय-समुद्घात, मारणान्तिक-समुद्घात, वैक्रियसमुद्घात, तेजस्-समुद्घात, आहारक-समुद्घात ।
समवाय-सुतं
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समवाय--६