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१३. धणिट्ठानक्षत्ते पंचतारे पण्णते।
१३. घनिष्ठा-नक्षत्र के पाँच तारे प्राप्त
१४. इमोसे रणं रयणप्पभाए पुढवीए
प्रत्थेगइयारणं नेरइयारणं पंच पलिग्रोवमाई ठिई पण्णता।
१४. इस रत्नप्रभा पृथिवी पर कुछेक
नैरकियों की पांच पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
१५. तच्चाए रणं पुढवीए प्रत्येगइयाणं
नेरइयारणं पंच सागरोवमाई लिई पण्णत्ता।
१५. तीसरी पृथ्वी [वालुकाप्रभा] पर
कुछेक नैरयिकों की पांच सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
१६. असुरकुमाराणं देवारणं अत्थेगइ-
याणं पंच पलिपोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।
१६. कुछेक असुरकुमार देवों की पांच
पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
१७. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्यगइ-
यारणं देवाणं पंच पलिप्रोवमाई ठिई पण्णत्ता।
१७. सौधर्म-ईशान कल्प में कुछेक देवों
की पाँच पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
१८. सणंकुमार-माहिंदेसु कप्पेसु अत्थे-
गइयाणं देवाणं पंच सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
१८. सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्प में कुछेक
देवों की पांच सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
१६. जे देवा वायं सुवायं वातावतं
वातप्पभं वातकंतं वातवरणं वातलेसं वातज्झयं वातसिंग वातसिद्धं वातकूडं वाउत्तरवडेंसगं सूरं सुसूरं सूरावत्तं सूरप्पमं सूरकंतं सूरवण्णं सूरलेसं सूरज्झयं सूरसिगं सूरसिद्धं सूरकूडं सूरुत्तरवडेंसगं विमारणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि रणं देवारणं उक्कोसेणं पंच सागरोवमाइं ठिई पण्णता ।
१६. जो देव वात, सुवात, वातावर्त,
वातप्रभ, वातकान्त, वातवर्ण, वातलेश्य, वातध्वज, वातशृंग, वातसृष्ट, वातकूट, वातोत्तरावतंसक, सूर, सुसूर, सूरावर्त, सूरप्रभ, सूरकान्त, सूरवर्ण, सूरलेश्य, सूरध्वज, सूरशृंग, सूरसृष्ट, सूरकूट और सूरोत्तरावतंसक विमान में देवत्व से उपपन्न हैं, उन देवों की उत्कृष्टतः पांच सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
समवाय-सुत्तं
समवाय-५