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उदितोदितकुलवंसा, . विसुद्धवंसा गुणेहि उववेया।। तित्थप्पवत्तयाणं, पढमा सिस्सा जिणवराण ॥
तीर्थ-प्रवर्तक जिनवरों के प्रथम शिष्य उदितोदित कुल - वंश वाले, विशुद्ध वंश वाले और गुणों से उपेत थे।
___E५. चौवीस तीर्थड्रों की प्रथम
शिष्याएं चौबीस थी, जैसे कि
६५. एएसि जं चउवीसाए तित्थ
गराणं चउवीसं पढमसिस्सिणीनो होत्या, तं जहा१.बंभी फग्गू सम्मा, अतिराणी कासवी रई
सोमा । सुमणा वारुणि सुलसा, धारिणि धरणो य
धरणिधरा॥ २. पउमा सिवा सुइ अंजू,
भावियच्या य रक्खिया। बधू पुप्फवती चेव,
अज्जा धणिलाय माहिया ॥ ३. जक्खिणी पुप्फचूला य, चंदणज्जा य आहिया। उदितोदितकुलवसा, विसुद्धवसा गुणेहि उववेया। तित्थप्पवत्तयाणं, पढमा सिस्सी जिणवराणं॥
१. ब्राह्मी, २. फल्गु, ३. शर्मा, ४.अतिराज्ञी, ५. काश्यपी, ६. रति, ७. सोमा, ६. सुमना, ६. वारुणी, १०. सुलसा, ११. धारणी, १२. धरणी, १३. धरणिधरा, १४, पद्मा, १५. शिवा, १६. शुचि, १७.अंजू, १८. भावितात्मा रक्षिका १६. बन्धू, २०. पुष्पवती, २१. आर्या धनिला, २२. यक्षिणी, २३. पुष्पचूला और २४, आर्या चन्दना। तीर्थ-प्रवर्तक जिनवरों की प्रथम शिष्याएँ उदितोदित कुलवंशवाली, विशुद्ध वंश वाली और गुणों से उपेत थी।
१६. जम्बूद्वीप द्वीप के भरतवर्ष में इस
अवसर्पिणी में बारह चक्रवर्ती के बारह पिता थे। जैसे कि
६६. जबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे
इमीसे प्रोसप्पिणीए बारस चक्कवट्टि-पियरो होत्था, तं जहा१. उसमे सुमित्तविजए,
समुद्दविजए य अस्ससेणे य। विस्ससेणे य सूरे, सुदंसणे कत्तवीरिए य॥
१. ऋषभ, २. मुमित्रविजय, ३. समुद्रविजय, ४. अश्वसेन, ५. विश्वसेन, ६. सूर, ७. सुदर्शन, ८. कार्त्तवीर्य, ६. पद्मोत्तर, १०. महाहरि,
समवाय-प्रकीर्ण
समवाय-सुत्त
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