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३५. विज्जाणुप्पवायस्स णं पुव्वस्स
पनरस वत्थू पण्णत्ता ।
३६. अवस्स
वत्थू पण्णत्ता ।
पुव्वस्स बारस
३७. पाणाउस्स णं पुव्वस्स तेरस वत्थू पण्णत्ता ।
३८. किरिया विसालस्स णं पुव्वस्स तसं वत्थू पण्णत्ता ।
३६. लोर्याबंदुसारस्स रणं पुव्वस्स पणुवीसं वत्थू पण्णत्ता ।
सेत्तं पुब्वगए ।
४०. से कि तं श्रणुनोगे ?
अणुप्रो
जहा -
मूलपढमाणुश्रोगे य गंडियाणुश्रोगे य ।
दुविहे पण्णत्ते, तं
४१. से किं तं मूल पढमाणुप्रोगे ?
समवायत्तं
मूलपढमाणुओगे -- एत्थ श्ररहंताणं भगवंताणं पुख्वभवा, देवलोगगमणाणि श्राउं, चवणाणि, जम्मणाणि य श्रभिसेया रायवरसिरीश्रो, सीयाश्री. पव्वज्जाश्रो, तवा य भत्ता, केवलणाणुप्पाया, तित्थपवत्तपाणि य, संघयणं, सठाणं, उच्चत्तं, श्राउयं, वण्णविभागो, सीसा, गणा, गणहरा य, प्रज्जा, पवत्तिणीनो, संघस्स व्हिस जं वावि परिमाणं,
३५. विद्यानुप्रवाद-पूर्व के पन्द्रह वस्तु प्रज्ञप्त हैं ।
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३६. अवन्ध्य-पूर्व के बारह वस्तु प्रज्ञप्त है ।
३७. प्रारणायु-पूर्व के तेरह वस्तु प्रज्ञप्त हैं ।
३८. क्रियाविशाल - पूर्व के तीस वस्तु प्रज्ञप्त हैं ।
३६. लोकबिन्दुसार - पूर्व के पच्चीस वस्तु प्रज्ञप्त हैं ।
यह है वह पूर्वगत |
४०. वह अनुयोग क्या है ?
अनुयोग दो प्रकार का प्रज्ञप्त है । जैसे कि -
मूलप्रथमानुयोग और कंडिकायोग ।
४१. वह मूलप्रथमानुयोग क्या है ?
मूलप्रथमानुयोग में अर्हत् भगवान् के पूर्वभव, देवलोकगमन, आयुष्य, च्यवन, जन्म, अभिषेक, राज्य लक्ष्मी, शिविका, प्रव्रज्या, तप और भक्त, केवल- ज्ञानोत्पत्ति, तीर्थप्रवर्तन, संहनन, संस्थान, ऊँचाई, आयुष्य, उच्चत्व, आयुष्य, वर्णविभाग, शिष्य, गण, गणधर, श्रार्या प्रवर्तनी, चतुर्विध संघ का परिमाण, जिन मन: पर्यंव, अवधिज्ञान, सम्यक्त्व, श्रुतज्ञानी, वादी, जिन्होंने अनुत्तर गति पाई
समवाय- द्वादशांग