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३. तत्थ रणं जेसे चउत्थे अंगे समवाएत्ति माहिते, तस्स एं अयमठे, तं जहा
३. इनमें जो चौथा अंग है, वह समवाय
कथित है। उसका यह अर्थ है । जैसे कि
४. एगे पाया।
४. आत्मा एक है।
५. एगे अणाया। ६. एगे दंडे । ७. एगे अदंडे ।
५. अनात्मा एक है। ६. दण्ड/हिंसा एक है।
७. अदण्ड/अहिंसा एक है।
८. क्रिया एक है।
६. अक्रिया एक है।
१०. लोक एक है।
८. एगा किरिया। ६. एगा प्रकिरिना। १०. एगे लोए। ११. एगे अलोए । १२. एगे धम्मे। १३. एगे अघम्मे। १४. एगे पुण्णे। १५. एगे पावे। १६. एगे बंधे। १७. एगे मोक्खे। १८. एगे पासवे। " १९. एगे संवरे। २०. एगा वेयरणा।
११. अलोक एक. है । १२. धर्म एक है। १३. अधर्म एक है । १४. पुण्य एक है। १५. पाप एक है। १६. बन्ध एक है । १७. मोक्ष एक है। १८. आस्रव/कर्म-स्रोत एक है। १६. संवर/कर्म-अवरोध एक है। २०. वेदना एक है। २१. निर्जरा/कर्म-क्षय एक है।
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२१. एगा रिणज्जरा।
समवाय-सुत्तं
समवाय-१