________________
७. सव्वेवि रणं चुल्लहिमवंतसिहरी
वासहरपब्बया एगमेगं जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तेणं, एगमेगं गाउयसयं उव्वेहेणं पण्णत्ता।
७. सभी क्षुल्ल हिमवंत और शिखरी
वर्षधर पर्वत ऊँचाई की दृष्टि से एक-एक सौ योजन ऊंचे और एकएक सौ गाउ उद्वेधवाले/गहरे प्रज्ञप्त
८. सवेवि रणं कंचरणगपवया एग
मेगं जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तणं, एगमेगं गायउसयं उन्हेणं एगमेगं जोयणसयं मूले विक्खंभेणं पण्णत्ता।
८. समस्त कांचनक पर्वत सौ-सौ योजन ऊँचे, सौ-सौ गाउ उद्वेधवाले/गहरे
और सौ-सौ योजन मूल में विष्कम्भक/ चौड़े प्रज्ञप्त हैं।
_०समय-सुत्त
- समनाय-सुत
२०६
समवाण-१०
समवाय-१००