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एक्कसत्तरिमो समवात्रो
१. चउत्यस्स णं चंदसंयच्छरस्स हेमंताणं एमफलत्तरीए राइदिएहि ursesafe सव्ववाहिरात्रो मंडलाओ सूरिए घाउट्ठि फरेइ ।
२. वोरियप्पवायस्स णं एक्कसर्त्तार पाहूटा पण्णत्ता |
३. प्रजिते रणं अरहा एक्कसर्त्तार पुव्वसयसहस्साइं श्रगारमभावसित्ता मुंडे नवित्ता णं श्रगाराश्री श्रगारिश्रं पव्वइए ।
४. सगरे णं रामा चाउरतचपकवट्टी एक्कसर्त्तार पुव्यय सहस्साई प्रगारमभावसित्ता मुंडे भवित्ता णं श्रगाराम्रो प्रणगारिश्रं पव्वइए ।
समवाय-सुतं
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इकहत्तरवां समवाय
१. चतुर्थ चन्द्र-संवत्सर की हेमन्त ऋतु के इकहत्तर रात-दिन व्यतीत होने पर सूर्य सर्व बाह्यमण्डल से प्रवृति ( दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर गमन) करता है ।
२. वीर्यप्रवाद के इकहत्तर प्रज्ञप्त हैं ।
प्राभृत/धिकार
३. श्रर्हत् श्रजित ने इकहत्तर शत- सहस्र / लाय पूर्वो तक श्रगार-मध्य रहकर मुंड होकर, अगार से अनगार प्रव्रज्या ली ।
४. चातुरन्त चक्रवर्ती राजा सगर ने इकहत्तर गत सहस्र / लाख पूर्वी तक गार-मध्य रहकर, मुंड होकर, श्रगार से अनगार प्रव्रज्या लो ।
समवाय-७१