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छत्तीसइमो समवायो १. छत्तीत्तं उत्तरज्झयणा पण्णत्ता,
तं जहाविणयसुयं परीसहो चाउरंगिज्जं असंखयं अकाममरणिज्जं पुरिसविज्जा उरभिज्जं काविलिज्ज नमिपन्वज्जादुमपत्तयं बहुसुयपूया हरिएसिज्जं चित्तसंभूयं उसुकारिज सभिक्खुगं समाहिठाणाई पावसमणिज्जं संजइज्जं मिगचारिया अणाहपव्वज्जा समुद्दपालिज्ज रहणेमिज्ज गोयमकेसिज्ज समितीमओ जण्णइज्जं सामायारी खलुकिज मोक्खमग्गगई अप्पमाओ तवोमग्गो चरणविही पमायठारपाइं कम्मपगडी लेसज्झयणं अणगारमग्गे
जीवाजीवविभत्ती य । २. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररणो समा सुहम्मा छत्तीसं जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं
होत्था। ३. समणस्स णं भगवो महावीरस्स
छत्तीसं अज्जाणं साहस्सीओ होत्था। ४. चेत्तासोएसु णं मासेसु सइ छत्तीस-
गुलियं सूरिए पोरिसीछायं निव्वत्तई।
छत्तीसवां समवाय १. उत्तर के अध्ययन (उत्तराध्ययन-सूत्र
के अध्ययन) छत्तीस प्रज्ञप्त हैं। जैसे किविनयश्रुत, परीपह, चातुरंगीय, असंस्कृत, अकाममरणीय, पुरुपविद्या, उरभ्रीय, कापिलीय, नमिप्रव्रज्या, द्रुमपत्रक, बहूश्रुतपूजा, हरिकेशीय, चित्रसंभूत इपुकारीय, सभिक्षुक, समाधिस्थान, पापश्रमणीय, संयतीय, मृगचारिका, अनाथप्रव्रज्या, समुद्रपालीय, रथनेमीय, गौतमकेशीय, समिति, यज्ञीय, सामाचारी, क्षुल्लकीय, मोक्षमार्गगति, अप्रमाद, तपोमार्ग, चरणविधि, प्रमादस्थान, कर्मप्रकृति, लेश्याध्ययन, अनगारमार्ग तथा जीवाजीवविभक्ति।
२. असुरेन्द्र असुरराज चमर की सुधर्मा
सभा ऊँचाई की दृष्टि से छत्नीस योजन ऊँची है।
३. श्रमण भगवान् महावीर के छत्तीस __ हजार आर्याएँ थीं।
४. चैत्र-आश्विन मास में सूर्य एक वार
छत्तीस अंगुल की पौरुपी छाया निष्पन्न करता है।
ममवाय-३६
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समवाय-सुत्तं