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________________ सत्तावीसइमो समवायो सत्ताईसवां समवाय १. सत्तावीसं अणगारगुणा पण्णत्ता, तं जहापाणातिवायवेरमणे, मुसावायवेरमणे, अदिण्णादाणवेरमणे, मेहुणवेरमणे, परिग्गहवेरमणे, सोइंदियनिग्गहे, चविखदियनिग्गहे, पाणिदियनिग्गहे, जिभिदियनिग्गहे, फासिदियनिग्गहे, कोहविवेगे, माणविवेगे, मायाविवेगे, खोमविवेगे, भावसच्चे, करणसच्चे, जोगसच्चे, खमा, विरागता, मणसमाहरणता, वतिसमाहरणता, कायसमाहरणता, णाणसंपण्णया, सणसंपण्णया, चरित्तसंपग्णया, वेयणहियासणया, मारणंतियअहियासणया। १. अनगार के गुण सत्ताईम हैं । जैसे कि१. प्राणातिपात-विरमण, २. मृपावाद विरमण, ३. अदत्तादान-विरमण, ४. मथुन विरमण, ५. परिग्रह विरमण, ६. श्रोत्रेन्द्रियनिग्रह, ७. चक्षुइन्द्रियनिग्रह, ८. घ्राणेन्द्रियनिग्रह, ६. रसनेन्द्रियनिग्रह, १०. स्पर्शनेन्द्रियनिग्रह, ११. क्रोधविवेक, १२. मानविवेक, १३. मायाविवेक, १४. लोभविवेक, १५. भाव-सत्य, १६. करण-सत्य, १७. योग-सत्य, १८. क्षमा, १६. वैराग्य २०. मनसमाहरण, २१. वचन-समाहरण, २२. काय-समाहरण, २३. ज्ञानसम्पन्नता, २४. दर्शन-सम्पन्नता, २५. चरित्र-सम्पन्नता, २६. वेदनाअधिसहन और २७. मारणान्तिक अघिसहन । २. जंबुद्दीवे दीवे अभिइवज्जेहि .. सत्तावीसए गक्खत्तेहिं संववहारे वट्टति । २. जम्बुद्वीप द्वीप में अभिजित को छोड़ कर सत्ताईस नक्षत्रों का संव्यवहार चलता है। ३. एगमेगे गंणक्खत्तमासे सत्तावीसं राइंदियाई राईदियग्गेणं पण्णत्ते। ३. प्रत्येक नक्षत्र-माम रात-दिन की दृष्टि से सत्ताईस रात-दिन का प्रज्ञप्त है। समवाय-२७ ६३ समवाय-सुतं
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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