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________________ अभ्यास करने की प्रणाली आगे पत्र नं. २५८ में तत्त्वनिर्णय करने के अभ्यासी को किस प्रकार अभ्यास करना चाहिये, वह पद्धति वताई है कि-"सो एकान्त में अपने उपयोग में विचार करे कि-जैसा उपदेश दिया वैसे ही है या अन्यथा है ? वहां अनुमानादि प्रमाण से वरावर समझे अथवा उपदेश तो ऐसा है और ऐसा न माने तो ऐसा होगा, सो इनमें प्रवल युक्ति कौन है और निर्वल युक्ति कौन है ? जो प्रवल भासित्त हो उसे सत्य जाने तथा यदि उपदेश से अन्यथा सत्य भासित हो अथवा उसमें सन्देह रहे, निर्धार न हो, तो जो विशेषज्ञ हों उनसे पूछे और वे उत्तर दें उनका विचार करे। इसी प्रकार जव तक निर्धार न हो तब तक प्रश्न-उत्तर करे अथवा समान बुद्धि के धारक हों उनसे अपना विचार जैसा हुआ हो वैसा कहे और प्रश्न-उत्तर द्वारा परस्पर चर्चा करे तथा जो प्रश्नोत्तर में निरूपण हुआ हो उसका एकान्त में विचार करे । इसी प्रकार जब तक अपने अंतरंग में जैसा उपदेश दिया था वैसा ही निर्णय होकर भाव भासित न हो तब तक इसी प्रकार उद्यम किया करे।" __पत्र नं. २५६ में कहा है कि-"इसलिये भाव भासित होने के अर्थ हेय-उपादेय तत्वों की परीक्षा अवश्य करनी चाहिये ।" पत्र नं. २६० में भी कहा है कि "परन्तु सम्यक्त्व का अधिकारी तत्वविचार होने पर ही होता है।" इस प्रकार जिनागम के अभ्यासी की पूर्वभूमिका बतलाई गई है।
SR No.010826
Book TitleShastro ke Arth Samazne ki Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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