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कुल उजवारे ॥ देऊ० ॥५॥ इति ।
॥ अथ गजल रेखता में। ..बड़ाये हे मुझे विष्मय रूप कैसातिहारा है। देवदेखे विविध विधिके न तेरा गुण निहारा है ।। टेर॥ कोई तो पशु मुखी देवा लखे में प्रगट जग माहीं।गजानन्न षडानन सरिसे अजव जिन्न देह धारा है।ब०॥१॥ पशू रूपी कोई देंवा कच्छ ओ मच्छ बारा ही॥ कोई तो जल अनल पूजे देव. पीपल नियाराहै।बादेव कोई पशु बाही चढे जो वृषभ आदिक पै॥ नशे के लालची केई. जिन्हों को मद पियारा है। बाशा कोई. क्रोधी लखे देवा धरें जो शखनिज करमें।। गदा कुंता.धनुष बरछी किसी के कर कुठारा