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यांकी ॥५॥.सार चतुर्दशं पूरव को यह भाख्यो आगम मांहि मुनीश ॥ अस सुमः रण से भयो पल. मांहि उरग. अवनी कों ईश ॥ आठ कोड-वसु लाख आठ हजार आठसे आठ जपीस । तीर्थ कर सोथाय इम ग्रन्थ मांहि गायो योगीश ॥ इमजानी उत्तम भव प्राणी जपा भक्तिभावें निशदीस। सत्तप शमके धरण हारे सूरीश्वर मगन - पाश । महामंत्र नवकार कहै मुनि माधव जपतां जय जय कारयाका०॥६॥इति।। •॥ अथ कब्बाली॥
॥ देऊ कोटि.धन्य में ताहि जो बाला पन संजम धारे॥जो बालापन संजम धारें जो निज आतम कारज सारे ॥देऊ०॥टेर।।
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