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साता ॥स. ॥४॥ निपट कपट कर झपट पराया धन जो ठग खाता ॥सो.॥ सो नर दिव शिव सुख से वंचित हो दुरगति जाता ॥ स.॥ ५ ॥ कपटी जन का कुजश केतु जग माहीं फर्रात्ता । इम जानी तज दीजै माया जो तू सुख चाता ॥स०॥६॥ सुख साथी संसार विपत में को आडा आता क्यों नाहक कर कपट मूढ मन माहीं हर काता ॥ स० ॥७॥ चरण करण युत सुगुरु मगन मुनि सव जग जन त्राताधाम मँडावर मांझ मुनी माधव इम समझाता ॥ सम० ॥ ८॥
॥ इति ॥ १ महल २ वजा