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शम रूपी थंभ उपाडन ॥ मान गजेंद्र पिछान ॥मा०॥२॥ मान महातमको विनशाडे ॥ मान घटावैकान। वुध विद्या नैपुनता नाशन । मानों मदिरा पान || मा० ॥३॥ मान कियां दशमुख दुख पायो।कर कुल को अवशान ॥ दुर्योधन कोणिक आदिकर्णे दुरगति कीन पयान ॥ || मा० ||४|| इम जानी मार्दवता करके । जी तो मान महान।। सुगुरु मगन सुपसाय पाय मति!! माधव करत वखान ॥ मा० ॥५॥ इति ॥
॥ पुनःपद ॥
॥ पदम प्रभु पावन नाम तिहारो ऐ देशी लोभ सम को जगमें दुख दाई | जासो जा बै सुजश वडाई ॥ टेर। पाप को बाप माह विष