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जावै ॥ हाथ, कछू ना आवै इम लखि लीजिये होराज ॥ इ० ॥ ३ ॥ अल्प हु क्रोध प्रचुर दुखदाई ॥ जिम . तिण को भारत भयो भाई। क्रोधी कह्यो कसाई कहूं न पतीजिये हाराज. ॥ ३० ॥ ४ ॥ क्रोध रिदे में कुमति जगाडै ॥ प्रीत पलक माहीं विन साडै । विधिकी बात विगाडै प्रगट लखीजिये होराज ॥३०॥ ॥५॥ क्रोध कियां नारहै, बडाई ॥ लज्जा लछमी जाय पलाई। नाशे.धार जताई किम से वीजिये होराज ।। इ०॥ ॥६॥ देखो भद्दा अच्चं कारी. ॥ क्रोध कियां दुख पायो भारी ॥, पेख पराई वारी अवश डरीजिये होराज ॥ इ०॥