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कान्हड कठियारो कहै यो द्रव्य अछे म्हारो।। "अहो अनुचर मति किलकारो।। वात मारी यह अवधारों॥दोहा॥किंकर कर पकडी क रीलिंगयो नरपति पास ॥ कान्हड से नृपने इम पूछी एतो धन तुझ पास केम आव्यों वादल फारी॥ध॥१७॥ कहै तव. कान्हड़ कर जोरी ।। विनय भूपति सुनिये मोरी ॥ सिरी पति सेठ धरम धोरी ॥ दियो तिन धन माय भर झोरी।दोहा।। ते धन वेश्या कों दियो।।में मन आंनी मान!!पुरण शशि लखि मिस कर नाठ्यो पाल्यों में पचखान बुलायो श्रीपति व्यापासधि०१८ानृपति से श्री पति इम भासे ॥ नियम में लियो सुगुरु पासे।। ठगुना में पर धनता से॥ करू सब कारेज
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