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सेठ लखि वोल्यो सुबिचारी॥ध ॥७॥कहों तुम चंपक परकासीः ।। मूल्य मौ लीनों स्यूंथासी।।टका दोय दीजै सुखराशी ॥ दाम ले परौ घरे जासी ।।दोहा।। कान्हडं कठिन यारा प्रतें । सेठ कह्यों समुझायः ॥ दिया. सुनैया भार प्रमाणे॥ कान्हड हरषितथाय।. . अमित तन छाई हुसियारी । ध० ८॥ . अंगमें फूल्यों नहिंमा३द्रव्यं ले निज घर
कोजावै ॥ एक वश्यां लखि ललचावैः ।।
द्रव्य से अनरथ ही थावै ॥ दोहा ।। .गणि .' का बैठी गोख में ।। नट विद लंपट साथ।।.
कान्हड लखि रसिया हंसि.बोले यो आयो तुझनाथ करेगी क्यों हमसे प्यारीधिवा श्रवण सुन बचन क्रोध खाके । वेग वेश्या