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( ३४ नियम ल्यो मुनिवर फरमायो । दोहा । कान्हड कहै घो मोभनी। शियल विरतनी आन. ॥ पूणम के दिन पर नारी को में कीयो पचखान | आज से साख सुगुरु थारी-|| ध० ॥३॥ नियम ले वंदन कर भा॥धाम निज आयों चितचा । विपन सेदारु भारलावै ॥नगर में वेचै अरुखावै।। ॥दोहा॥ इम अनुक्रम करतां थकांआयो वरषा काल॥घोर घोर धन वषन लाग्यो नदी वहें असराल विहग वोले वोली प्यारी।। ॥धः॥४॥ कान्हरज्जू कुठार झाली ॥
ओढ सिरसे कामर काली ॥ चल्यो, वन काटन तरु डाली।. धरणि पे हो रही हरि याली ॥ दोहा॥ विषम नदी इक बाटम।।