________________
(. .११. ) .. सुमरण से आजहूं साता पामें सुमरणहारा। मेतारज मुनि अभय दान दे निर्मय पद. पायों निर्वाण ।।स० ॥ ४॥ पंखों परतख दान सुपातर है: मुख संपति को दातार॥ दें सुपात्र को दान सो भरै अगण्य पूण्य भंडार ॥ दान सुपात्र प्रभाव मुमनने पाई. ऋद्धि अचिंत्य उदार ।। सुरपति के सम्म भोग भोगे. नर भव में शालि कुमारदान सुपात्रतनी महिमा कोको कोविद करसके. बयान |स०॥ ५॥ दूषण पंच पंचही भूषण दान तने भाखे भगवन्नौदूषण तजकें सजो भवि भूषण तिनका सुन बरनन्न ।विप्रिय चन बिना आदेर अरुकर बिलम्बै देबिल.. खदैन । पोमांदे दाने ये दूषण पँचत :