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॥ अथ लावणी रंगत लँगडी।
सुख सुमाग संपति शिवदाई स्वर्ग शेल सोपान समाना।सत गुरु भाख्यो सदां शुध भाव सहित दीजै भविदानादेशादान दियें दारिद्र नशे जश कीरत दह दिशमें छावे।। प्रीत बनाबे विविध विध बैभव बिन उद्यम पावै ।। आधि व्याधि दुख दोहग दुःकृत दूरटले भय विरलावै।।सब जग जाने विपत मैं दान दियो आडो आबे ॥ दानी जनको नाम जगतमें लें. सब कोई होत विहान।।
स०॥ १॥ दान प्रभाव निधान मिलै गुण ज्ञान-मिले, अति आदरसेबिन श्रम कायें रसायन मिलै मिलै मणि मणि धरस।काम धेनु चितामिणि चित्रा बेलि मिल जल धर