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________________ ४७ | उपसंहार । इसके अनंतर सभापतिजीका व्याख्यान ( आपकी आज्ञासे मुनिराज श्रीवल्लभविजयजी महाराजने ) जो पढ़कर सुनाया था वह नीचे दर्ज किया जाता है. " सभापतिजीका व्याख्यान. " सान्य मुनिवरो ! आपकी शुभ इच्छासे मुनिसम्मेराजा लनका कार्य निर्विघ्नतापूर्वक समाप्त हुआ, आपके प्रशंसनीय उत्साहको देखकर मुझे बहुतही आनंद हो रहा है ! मुझे पूर्ण आशा है कि, भविष्य में भी आपके सद् उद्योगसे ऐसे ही महत्वशाली और धर्म उन्नतिके जनक कार्य होते रहेंगे ! महाशयो ! आजकल एकताकी बहुत खामी है ! पिता पुत्रके बीच, गुरु शिष्य के अंदर, भाई भाईके मध्यमे, स्त्री पुरुषके दरमियान जिधर देखो उधरही प्रायः मतभेद दिखाई देता है ! परंतु अपने अर्थात् पूज्यपाद श्रीमद्विजयानंद सूरिश्री आत्मारामजीके शिष्य समुदायमें इसका समावेश अभीतक नहीं हुआ, यह वही हर्षकी बात है ! ऐसी एकता सदैवके लिये वनी रहे इस बातका स्मरण रखना आपका परम कर्तव्य है ! अपने में इस समय कैसा सम्प है. इस प्रश्नका उत्तर यह मुनि-. सम्मेलन अच्छी तरहसे दे रहा है ! मुनिवरो ! यह एकतारूप तंत्र वड़ाही प्रभावशाली है ! उन्नतिके प्रशस्त मार्गमें चलने वा चलानेवाले सत्पुरुषोंके लिये इस महामंत्रका अनुष्ठान वड़ाही हितकर है ! इसकी कृपासे
SR No.010821
Book TitleMuni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Sharma
PublisherHirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad
Publication Year1912
Total Pages59
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tithi, Devdravya, & History
File Size3 MB
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