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________________ ३५ साधु होकरभी शांति न रखी तो वो साधुही काहेका? साधारण समयमें तो सवही मायः शांतता रखते हैं, लेकिन ऐसे विकट प्रसंगमें शांतता रहे, तोही साधुपनेकी परीक्षा होती है ! पूर्वोक्त हेन्डविल, येभी एक ऐसाही प्रसंग प्रवर्तक श्री कांतिविजयजी वगैरहके लियेथा ! उनकी तथा हमारे पूज्यपाद गुरुवर्य श्रीआत्मारामजी महाराज कि, जिनके लिये तमाम हिन्दुस्तानके जैनहीं नहीं बल कि जैनेतर लोगभी मगरूर हैं उनके निसवतभी विनाही कारण मगजभी फिर जाय ऐसे अश्लील शद्रोंका उपयोग किया है ! तोभी श्री प्रवर्तकजी महाराज तथा वल्लभविजयजीने शांतता धारण करके पंजावादि देशोंके श्रावकोंके दुखे हुए दिलोंकोभी शांत किया.+ जिससे वढता लेश अटक गया. इससे .. अपनेको यही सार लेना चाहिये कि अपनेकोभी ऐसे प्रसंग पर शांतता रखनी चाहिये ! इस पर पन्यास श्रीदानविजयजी महाराजने अच्छी पुष्टि कीथी. + सभ्य वाचकवृंद ! मुनियों के क्षमा धर्मकातो अनुभव आपको प्रत्यक्षही हो गया ! परंतु ऐसे ऐसे पूज्य महात्माओंकी वायत खोटी नजर करनेवालेको परभवमें क्या सजा होगी? वहतो अतिशय ज्ञानीही जानते हैं। मगर पापका फल थोडा, या बहुत, इसलोकमेंभी मिल जाता है. इस शास्त्रीय नियमानुसार विनाशकाले विपरीत बुद्धिः इस मुजिय क्षमाप्रधान साधुओं पर हमला करता करता कितनेक गृहस्थोंपरभी मोहन लल्लुने अपने हेडपिलमें अनुचित्त शवोसें हमला किया ! जिसका तात्कालिक फल अमदावादको अदालतसे तीन प्रेस. वालोंको और मोहन लल्लुको सजा मिल चुकी है ! (लेखक.)
SR No.010821
Book TitleMuni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Sharma
PublisherHirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad
Publication Year1912
Total Pages59
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tithi, Devdravya, & History
File Size3 MB
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