SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२ प्रस्ताव चौदवां. (१४) अपने साथमें चौमासा करनेवाले या विचरनेवाले साधुके नामका पत्र, आवे तो उसको खोलकर बांचनेका अधिकार मंडलीके बड़े साधुकोही है. यदिवो योग्य जाने तो उस साधुको समाचार सुनावे, या पत्र देवे, उनका अखतियार है. इसलिये वडेके सिवाय दूसरेको पत्रव्यवहार नहीं करना चा- . हिये. कदापि अपनेको कोई कहींसे जरूरी समाचार मंगवाना. होतो, जो अपने साथ बड़े हो उनकेद्वारा मंगवाना उचित है. यह प्रस्ताव मुनिश्री ललितविजयजीने पेश कियाथा जिसकी पुष्टि मुनिश्री विमलविजयजी मुनिश्री तिलकविजयजी तथा मुनिश्री कपूरविजयजीने अच्छीतरह कीथी. अंतमें सबकी राय मिलनेपर प्रस्ताव पास किया गया. प्रस्ताव पंद्रवां. (१५) जनेतर कोईभी अच्छा आदमी जीव दया आदि धर्मसंबंधी उपदेश वगैरहका उद्यम करता हो तो, उसकोभी अपने साधुआंने यथाशक्ति मदद करनेका प्रयत्न करना. यह प्रस्ताव प्रवर्तक श्रीकांतिविजयजी महाराजने पेश करते हुए मालूम कियाधाकि, अपना धर्म दयामय है. ' अहिंसापरमोधर्मः' यह जैनका अटल सिद्धांत है !
SR No.010821
Book TitleMuni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Sharma
PublisherHirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad
Publication Year1912
Total Pages59
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tithi, Devdravya, & History
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy