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________________ जमाना प्रायः सुधरा हुआ और सत्यका ग्राहक हो रहा है. सैंकड़ों मनुष्य असली शुद्ध तत्वकी चाहनावाले आपको मिलेंगे मगर शांतिपूर्वक उन्हें समझानेकी जरूरत है ! मेरा कहना यह नहीं मानता है, इसलिये यह नास्तिक है ! इसके साथ बात करनी योग्य नहीं है ! ऐसी ऐसी तुच्छताको अपने दिलमें स्थानही नहीं देना चाहिये ! जबतक अगलेके दिलकी तसल्ली न हो वो एकदम आपके कहनेको कैसे स्वीकार कर सकता है ? यदि आपके कथनको सत्यही सत्य मानता चला जावेतो उसका समझानाही क्या? वोतो आगेही श्रद्धालु होनेसे समझा हुआ है ! मैं मानताहूं कि, भगवान् श्रीमहावीरस्वामीजी तथा श्रीगौतमस्वामीजीका बयान ऐसे मौकेपर ख्याल करना अनुचित नहीं समझा जायगा. श्रीगौतमस्वामी श्रीमहावीरस्वामीके पास किस इरादेसे आयेथे ? परंतु श्रीमहावीरस्वामीके शांत उपदेशसे उनकी शंकाओंका योग्य समाधान होनेसे सत्य वस्तु झट ग्रहण करली. यहां श्रीमहावीरस्वामीने यह ख्याल नहीं किया है कि, यह वादी बनकर आया है इससे क्या बोलना ? वलकि हे इंद्रभूते ! हे गौतम ! इत्यादि मीष्ट वचनोंसे आमत्रण देकर उनको समझाया. जबकि, हमतुम वीरपुत्र कहाते हैं तो वीर अपने पिताश्रीका अनुकरण करना हम तुमको योग्य है नकि, अननुकरण ! इस लिये शांतिके साथ अनुग्रह बुद्धिसे यदि उन लोगोंको धर्मके तत्व तथा धर्मका रहस्य समझाया जावे तो मैं यकीन करताहूं कि आपको वड़ाही भारी लाभ होवे. महाशयो ! प्रतापी गवर्मीटके शांतिमय राज्यमें यह
SR No.010821
Book TitleMuni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Sharma
PublisherHirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad
Publication Year1912
Total Pages59
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tithi, Devdravya, & History
File Size3 MB
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