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________________ २८ सीने कह दिया कि, क्यों साहिव'! आप यहां क्यों आये ? इत्यादि कई प्रकारकी कल्पनायें कर घने भोले जीव अलभ्य लाभसे वंचित रहते हैं ! तो उनको ऐसा समयही न मिले इस प्रकारकी व्यवस्थाका करना जानकार श्रावकोंका कर्तव्य समझा जाता है. ____ मतलव कि, जिस तरह हो शके अपनी वृत्तिकी रक्षापूर्वक जाहिर व्याख्यानद्वारा लोगोंको फायदा पहुंचानेका और अन्य समाजोंमें जाकर स्वयं किसी न किसी वातका फायदा लेनेका या समाजस्थ सभ्य लोगोंको फायदा देनेका ख्याल अवश्य रखना चाहिये. ऐसा होनेसे.पूर्ण आशा है कि, मात्र उपाश्रयमेंही वैठकर केवल श्राद्ध वर्गके आगे उपदेश दिया जाता है उससे कइगुणा अधिक लाभ होगा. यदि एक जीवकोभी शुद्ध धर्मके तत्वका श्रद्धान होजावे तो मेरा ख्याल है कि सारी जिंदगीका दिया उपदेश सफल हो जावे ! वाकी जो श्राद्ध वर्ग है सो तो है ही. परंतु उसमेंभी विद्याभ्यासकी खामीके कारण परमार्थको समझनेवाले प्रायः थोडेही निकलेंगे! घने तो केवल जी महाराजही, कहनेवाले होगें यह वात कोइ आप लोगोंसे छिपी हुई नहीं है। इस लिये, जमानेकी तर्फ . दृष्टि करनी अपना फरज समझा जाता है. शास्त्रकारोंकाभी फरमान द्रव्यक्षेत्रकाल भावानुसार वर्तन करनेका नजर आता है. ऐसा होनेपरभी यदि जमानेको मान न दिया जावे तो मैं कह सकताई कि उसने शास्त्र या शास्त्रकारोंको मान नहीं दिया! आप जानते हैं आजकलका जमाना कैसा है ? आजकलका
SR No.010821
Book TitleMuni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Sharma
PublisherHirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad
Publication Year1912
Total Pages59
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tithi, Devdravya, & History
File Size3 MB
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