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प्रतिक्रमणविचार.
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पापनो पश्चाताप ते वडे थई शके छे. शुद्धभाव वडे करी पश्चाताप करवाथी लेश पाप थतां परलोकभय अने अनुकंपा छूटेछे; आत्मा कोमळ थाय छे. त्यागवा योग्य वस्तुनो विवेक आवतो जायछे. भगवत्साक्षीए अज्ञान आदि जे जे दोप विस्मरण थया होय तेनो पश्चाताप पण थई शकेछे, आम ए निर्जरा करवानुं उत्तम साधन छे.
एतुं आवश्यक एवं पण नाम छे, आवश्यक एटले अवश्य करीने करवा योग्य; ए सत्य छे. ते वडे आत्मानी मलिनता खसे छे, माटे अवश्य करवा योग्य छे.
सायंकाळ जे प्रतिक्रमण करवामां आवे छे तेनुं नाम 'देवसीय डिक्कमण' एटले दिवस संबंधी पापनो पश्चाताप ; अने रात्रिना पाछला भागमां प्रतिक्रमण करवामां आवे छे ते 'राइयपडिकमण' कहेवाय छे. 'देवसीय ' अने 'राइय' ए प्राकृत भाषाना शद्धो छे. पखवाडीए करवानुं प्रतिक्रमण ते पाक्षिक अने संवत्सरे करवानुं ते सांवत्सरिक (छमछरी) कवा छे. सत्पुरुषो योजनाथी वांधेलो ए सुंदर नियम छे.
केटलाक सामान्य बुद्धिमानो एम कहेछे के दिवस अने रात्रीनुं सवारे प्रायश्चितरुप प्रतिक्रमण कर्यु होय तो कंइ खोडं नथी, परंतु ए कहेतुं प्रमाणिक नथी. रात्रिये अकस्मात् अमुक कारण आवी पडे के काळधर्म प्राप्त थाय तो दिवस संबंधी पण रही जाय.