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६८ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाळा. - पिता-एमां आडा अबळा अंक मृक्या छे, तेनुं काइ पण कारण तारा समजवामां छे ?
पुत्र-नहीं पिताजी.-मारा समजवामां नयी माटे आप ते कारण कहो.
पिता-पुत्र! प्रत्यक्ष छे के मन ए एक बहु चंचळ चीज छे; जेने एकाग्र कर वहु बहु विकट छे; ते ज्यां मुधी एकाग्र यतुं नथीत्यां मुधी आत्ममलिनता जती नथी, पापना विचारो घटता नथी. ए एकाग्रता माटे वार प्रतिज्ञादिक अनेक महान साधनो भगवाने कयां छे. मननी एकाग्रताथी महा योगनी श्रेणिये चहवा माटे अने तेने केटलाक प्रकारची निर्मळ करवा माटे सत्पुरुषोए आ एक साधनल्प कोष्टकावली करीछे. पंच परमष्टि मंत्रना पांच अंक एमां पहेला मृक्या छ : अने पछी लोमविलोमस्वरुपमा लमबंध एना ए पांच अंक मुकीने भिन्न भिन्न प्रकारे कोष्टको की २. एम करवानुं कारण पण मननी एकाग्रता थईने निर्जरा करी गकाय, ए छे.
पुत्र-पिताजी! अनुक्रमे लेवायी एम गामाटे न यइ शके? पिता-लोमविलोम होय तो ते गोठवतां जर्बु पडे अने नाम संभारतां जर्बु पडे. पांचनो अंक मृक्या पड़ी वेनो आंकडो आवे के 'नमो लोए सवसाहुण' पछी-'नमोअरिहंताण' ए वाक्य मुकीने 'नमो सिद्धाण' ए वाक्य संभार पडे. एम पुनः पुनः लभनी हता राखतां मन एका