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५८ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाला. आपणे भोजन न करता होइए; परंतु तेनो जो प्रत्याख्यानरूपे नियम न कर्यो होय तो ते फळ न आपे; कारण आपणी इच्छा खुल्ली रही. जेम घरनुं वारणुं उघार्यु होय अने श्वानादिकजनावर के मनुष्य चाल्यु आवे तेम इच्छानां द्वार खुल्ला होय तो तेमां कर्म प्रवेश करे छे. एटले के ए भणी आपणा विचार छूटथी जाय छे; ते कर्मवंधननुं कारण छ, अने जो प्रत्याख्यान होय तो पछी ए भणी द्रष्टी करवानी इच्छाथती नथी.जेम आपणे जाणीए छीए के वांसानो मध्य भाग आपणाथी जोइ शकातो नधी, माटे ए भणी आपणे द्रष्टि पण करता नथी, तेम प्रत्याख्यान करवायी आपणे अमुक वस्तु खवाय के भोगवाय तेम नयी एटले ए भणी आपणुं लक्ष स्वाभाविक जतुं नथी, ए कर्म आववाने आडो कोट थइ पड़े छे. प्रत्याख्यान कर्या पछी विस्मृति वगैरे कारणथी कोइ दोष आवी जाय तो तेनां प्रायश्चितनिवारण पण महात्माओए कह्यां छे.. __ प्रत्यास्यानथी एक वीजो पण मोटो लाभ छे; ते एके अमुक वस्तुओमांज आपणुं लक्ष रहे छे, वाकी वधी वस्तुओनो त्याग पड जायछे जे जे वस्त त्याग करी छे ते ते संबंधी पछी विशेष विचार, ग्रह, मूकबुं के एवी कंड उपाधि रहेती नथी. एवडे मन वह वहोळताने पामी निय- . मरूपी सडकमां चाल्यु जायछे. अश्व जो लगाममां आवी जाय छे, तो पछी गमे तेवो भवळ छतां तेने धारेले रस्ते जेम लइ जवाय छे तेम मन ए नियमरूपी लगाममा आववाथी