SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४ श्रीमद् राजजंद्र भणीत मोक्षमाळा. निशदिन मग्न छे. वेद, अने वैष्णवादि पंथोमां पण मूक्ष्म दया संबंधी कंइ विचार जोवामां आवतो नथी. तोपण एओ केवळ दयाने नहीं समजनार करतां घणा उत्तम छे. स्थूळ जीवोनी रक्षामां एठीक समज्या छे; परंतु ए सपळा करतां आपणे केवा भाग्यशाली के ज्यां एक पुष्पपांखडी दभाय त्यां पापछे ए खरं तत्त्व समज्या अने यज्ञयागादिक हिंसाथी तो केवळ विरक्त रह्या छीए ! वनता प्रयत्नथी जीव बचावीए छीए, वळी चाहिने जीव हणवानी आपणी लेश इच्छा नथी. अनंतकाय अभक्ष्यथी वहु करी आपणे विरक्त ज छीए. आ काळे एसपळो पुण्यप्रताप सिद्धार्थ भूपाळना पुत्र महावीरना कहेला परमतत्त्ववोधना योगवळयी वध्यो छे. मनुष्यो रीद्धि पामे छे, सुंदर स्त्री पामे छे, आज्ञाकित पुत्र पामे छे, वहोलो कुटुंबपरिवार पामे छे, मानप्रतिष्ठा तेमज अधिकार पामे छे, अने ते पामवां कंइ दुर्लभ नथी; परंतु खरुं धर्मतत्त्व के तेनी श्रद्धा के तेनो थोडो अंश पण पामवो महा दुर्लभ छे, ए रीद्धि इत्यादिक अविवेकथी पापर्नु कारण थई अनंत दुःखमां लई जाय छे; परंतु आ थोडी श्रद्धा-भावना पण उत्तम पदिए पहोंचाडे छे. आम दयानु सत्परिणाम छे, आपणे धर्मतत्त्वयुक्त कुळमां जन्म पाम्या छीए तो हवे जेम बने तेम विमळ दयामय वर्त्तनमां आवg. वारंवार लक्षमा राखवुके, सर्व जीवनी रक्षा करवी. वीजाने पण एवो ज युक्तिप्रयुक्तिथी वोध आपवो. सर्व जीवनी रक्षा करवा माटे एक वोधदायक उत्तम युक्ति बुद्धिशाळा अभय सत्परिणाम जेमवने तेम जीवनी रक्षा करावनी रक्षा
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy