________________
संसारने चार उपमा भाग १. ३५ उतरे छे तैम पापरूपी जळ पामीने संसार उंडो उतरे छे. एटले मजबुत पाया करतो जाय छे.
२. संसारने वीजी उपमा अग्मिनी छाजे छ, अमिथी करीने जेम महा तापनी उत्पत्ति छे, तेम संसारथी पण त्रिविध तापनी उत्पत्ति छे. अग्निथी वळेलो जीव जेम महा विलविलाट करे छे, तेम संसारथी वळेलो जीव अनंत दुःखरूप नरकथी असह्य विलविलाट करे छे. अनि जेम सर्व वस्तुनो भक्ष करी जाय छे, तेम संसारना मुखमां पडेलांनो ते भक्ष करी जाय छे. अग्निमां जेम जेम घी अने इंधन होमाय छे, तेम तेम ते वृद्धि पामे छे तेवी ज रीते संसाररूप अमिमां तीव्र मोहरूपघी,अने विषयरूप इंधन होमाता ते वृद्धि पामे छे.
३. संसारने त्रीजी उपमा अंधकारनी छाजे छे. अंधकारमा जेम सौंदरी, सपनुं भान करावे छे, तेम संसार सत्यने असत्यरूप वतावे छे; अंधकारमा जेम पाणीओ आम तेम भटकी विपत्ति भोगवे छे, तेम संसारमा वेभान थइने अनंत आत्माओ चतुर्गतिमां आम तेम भटके छे. अंधकारमा जेम काच अने हीरानुं ज्ञान थतुं नथी, तेम संसाररूपी अंधकारमा विवेक अविवेकनुं ज्ञान थतुं नथी. जेम अंधकारमा प्राणीओ छती आँखे अंध वनी जाय छे, तेम छती शक्तिए संसारमा तेओ मोहांध वनी जाय छे. अंधकारमा जेमघुवड इत्यादिकनो उपद्रव वधे छे, तेम संसारमा लोभ, मायादिकनो उपद्रव वधे छे. एम अनेक भेदे जोतां संसार ते अंध. काररूप ज जणाय छे,