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श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाळा. पुस्तक वी.
शिक्षापाठ १. वांचनारने भलामण.
वांचनार ! भा पुस्तक आने तमारा हस्तकमळमां आवे छे. तेने लक्षपूर्वक बांचनो, नमां कद्देला विपयोने विवेकयी विचारजी, अन परमार्थने हृदयमांधारण करजो. एम करशो नो तमे नीनि, विवेक, ध्यान, ज्ञान, सद्गुण अने आत्मशांति पामी शकयो.
तमे जाणना गो के, केटलांक अज्ञान मनुष्यो नहीं वांचवायोग्य पुस्तको वांचीने अमूल्य वखन च्या खोइ दे छे जेधी तेओ अबळ रस्ते चटी जाय छे, आलोकमां अपकीर्नि पामे छ; अने परलोकमां नीच गतिए जाय छे.
भापाज्ञाननां पुस्तकोनी पेठे आ पुस्तक पठन करवान नधी, पण मनन करवानुं छे. तेथी आ भव अने परभव