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१७८ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाळा. तकोप्रति मारे कइ राग बुद्धि नथी, के एमाटे पक्षपाते हूँ कंइपण तमने कहुं तेमज अन्यमत प्रवर्तकोप्रति मारे कई वैरवुद्धि नथी के मिथ्या एजें खंडन करुं वन्नेमां हुँतो मंदमति मध्यस्थरुप छउं. वहु बहु मननथी अने मारी मति ज्यांसुधी पहोंची त्यांसुधीना विचारथी हुँ विनयी कई छउं, के प्रिय भन्यो ! जैन जेवू एके पूर्ण अने पवित्र दर्शन नथी; वीतराग जेवो एक देव नथी, तरीने अनंत दुःखी पार पामवं होय तो ए सर्वज्ञ दर्शनरुप कल्पवृक्षने सेवो.
शिक्षापाठ ९५. तत्त्वावबोध भाग १४. __ जैन ए एटली वी सूक्ष्म विचार संकळनाथी भरेलु दर्शन छे के एमां प्रवेश करतां पण बहु वखत जोइए. उपर उपरथी के कोई प्रतिपक्षीना कहेवाथी अमुक वस्तु संबंधी अभिप्राय वांधवो के आपवो ए विवेकीनं कर्तव्य नथी. एक तळाव संपूर्ण भर्यु होय, तेनुं जळ उपरथी समान लागे छे; पण जेम जेम आगळ चालीए छीए तेम तेम वधारे वधारे एंडापणु आवतुं जाय छे छतां उपरतो जळ सपाटज रहेछे तेम जगतना सघळा धर्ममतो एक तळाव रुप छे, तेने उपरथी सामान्य सपाटी जोइने सरखा कही देवा ए उचित नथी. एम कहेनारा तत्वने पामेला पण नथी. नैनना अकेका पवित्र सिद्धांतपर विचार करतां आयुष्य पूर्म थाय, तोपण पार पमाय नहीं तेम रघु छे. वाकीना