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११४ श्रीमद् राजचंद्र मणीत मोक्षमाळा. जगत्कर्ता प्रमाणवडे सिद्ध थइ शकतो नथी. केटलाक ज्ञानथी मोक्षछे एम कहेछे ते एकांतिक छे; तेमज क्रियाथी मोक्ष छे एम कहेनारा पण एकांतिक छे. ज्ञान, क्रिया ए वनेथी मोक्ष कहेनारा तैना यथार्थ स्वरुपने जाणता नथी ; अने ए वनेना भेद श्रेणिबंध नथी कही शक्या एज एमनी सर्वज्ञतानी खामी जणाइ आवेछे. ए धर्ममतस्थापको सदेवतत्वमां कहेलां अष्टादश दुपणोथी रहित नहोता, एम एओए उपदेशेलां शास्त्रो अथवा तेमना चरित्रोपरथी पण तत्त्वनी द्रष्टिए जोतां देखाय छे. केटलाक मतोमा हिंसा, अब्रह्मचर्य इत्यादि अपवित्र आचरणनो बोध छे ते तो सहजमां अपूर्ण अनेसरागीना स्थापेला जोवामां आवेछे. कोइए एमां सर्वव्यापक मोक्ष, कोइए कंइ नहीं ए रुप मोक्ष, कोइए साकारमोक्ष अने कोइए अमुक काळमुधी रही पतित थर्बु ए रुप मोक्ष मान्यो छे; पण एमाथी कोइ वात तेओनीसप्रमाण थइ शकती नथी. एओना विचारोनुं अपूर्णपणुं निष्पृहीतत्त्ववेत्ताओए दर्शाव्यु छे, ते यथावस्थित जाणवू योग्य छे.
वेद शिवायना वीजा मतोना प्रवर्तकोनां चरित्रो भने विचारो इत्यादिक जाणवाथी ते मतो अपूर्ण छ एम जणाई आवे छे. वर्तमानमा जे वेदो छे ते घणा प्राचीन ग्रंथो छे तेथी ते मतनुं प्राचीनपणुं छे, परंतु ते पण हिंसाए करीने दूषित होवाथी अपूर्ण छ, तेमज सरागीनां वाक्य छ एम स्पष्ट जणाय छे.