________________
१०४ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाळा.
सत्य-शा माटे बेसती नथी. जिज्ञासु-कारण एथी अशुचि वधे छे. सत्य-कइ अशुचि वधे छे? जिज्ञासु-शरीर मलिन रहेछे ए.
सत्य-भाइ, शरीरनी मलिनताने अशुचि कहेवी ए वात कंइ विचार पूर्वक नथी. शरीर पोते शानुं वन्युं छे एतो विचार करो. रक्त, पित, मळ, मूत्र श्लेष्मनो ए भंडार छे. तेपर मात्र त्वचा छे, छतां ए पवित्र केम थाय? वळी साधुए एवं कइ संसार कर्त्तव्य कर्यु न होय के जेथी तेओने स्नान करवानी आवश्यकता रहे.
जिज्ञासु-पण स्नान करवार्थी तेओने हानि शुं छे ?
सत्य-ए तो स्थूळबुद्धिज प्रश्न छे. नहावाथी कामामिनी प्रदीतता, वृतनो भंग, परिणाममुं वदलवू, असंख्याता जंतुनो विनाश, ए सघळी अशुचि उत्पन्न थाय छे अने एथी आत्मा महामलिन थाय छे. प्रथम एनो विचार करवो जोइए. जीवहिंसायुक्त शरीरनी जे मलिनता-छे ते अशुचि छे. अन्य मलिनताथी तो आत्मानी उज्जवळता थाय छे, ए तत्वविचारे समजवानुं छे नहावाथी वृत्तभंग थइ आत्मा मलिन थाय छ; अने आत्मानी मलिनता एज अशुचि छे. । जिज्ञासु-मने तमे बहु सुंदर कारण बताव्यु. सूक्ष्म विचार करतां जिनेश्वरनां कथनयी बोध अने अत्यानंद