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ज्ञानीओए वैराग्य शा माटे वोध्यो ? ९९
जग्या पण झेर विना रही नथी. एक भुंडयी करीने एक चक्रवर्त्ती सुध भावे करीने सरखापणुं रहुं छे एटले चक्रवत्तींनी संसार संबंधमां जेटली मोहिनी छे, तेटलीज वलके तेथी विशेष भुंडने छे, चक्रवत्ती जेम समग्र प्रजापर अधिकार भोगवे छे, तेम तेनी उपाधि पण भोगवे छे. भुंडने एमांनुं कशुंए भोगव पडतुं नथी. अधिकार करतां उलटी उपाधि विशेष छे. चक्रवत्तनो पोतानी पत्नी प्रत्येनो जेटलो प्रेम छे, तेटलो ज अथवा तेथी विशेष भुंडनो पोतानी भुंडणी प्रत्ये प्रेम रह्यो छे. चकवत्ती भोगथी जेटलो रस लेछे, तेटलोज रस झुंड पण मानी वेढुं छे. चक्रवत्तींनी जेटली वैभवनी वहोळता छे, तेटलीज उपाधि छे, भुंडने एना वैभवना प्रमाणमां छे. वन्ने जन्म्यां छे अने वने मरवानां छे. आम सूक्ष्म विचारे जोतां क्षणिकताथी, रोगथी, जरा वगेरेथी बन्ने ग्राहित छे. द्रव्ये चक्रवर्ती समर्थ छे, महा पुण्यशाळी छे, मुख्यपणे सातावेदनीय भोगवे छे, अने भुंड विचारु असातावेदनीय भोगवी रह्युं छे. वन्नेने असाता - सातापण छे; परंतु चक्रवर्ती महा समर्थ छे. पण जो ए जीवन पर्यंत मोहांव रह्यो तो सघळी बाजी हारी जवा जेवुं करेछे. भुंडने पण तेमज छे. चक्रवर्ती शलाकापुरुष होवाथी भुंडथी ए रुपे एनी तुल्यना नथी; परंतु आ स्वरुपे छे. भोग भोगबवामां वने तुच्छ छे; वन्नेनां शरीर पर मांसादिकनां छे; असाताथी पराधीन छे; संसारनी आ उत्तमोत्तम पट्टी आवी रही तेमां आवुं दुःख, आवी क्षणिकता, आवी