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विवेक एंटले शुं? ९७ गुरु:-आयुष्यमानो! ए वां द्रव्य पदार्थ छे; परंतु आत्माने कइ कडवाश, कइ मधुराश, कयुं झेर अने कयु अमृत छे? ए भावपदार्थोनी एथी कंइ परीक्षा थइ शके ? __ लघु शिष्यः-भगवन् ! ए संबंधी तो अमारं लक्ष पण नथी. ___ गुरु:-त्यारे एज समजवानुं छे के ज्ञान-दर्शनरुप आत्माना सत्य भाव पदार्थने अज्ञान अने अदर्शन रुप असत् वस्तुए घेरी लीधा छे, एमां एटली वधी मिश्रताथइ गइ छे के परीक्षा करवी अति अति दुर्लभ छे संसारनां मुखो अनंतिवार आत्माए भोगव्यां छतां, तेमांथी हजु पण मोह टळयो नहीं, अने तेने अमृत जेवो गण्यो ए अविवेक छे; कारण संसार कडवो छे. कडवा विपाकने आपे छे. तेमज वैराग्य जे ए कडवा विपाक औपध छे, तेने कडवो गण्यो ; आ पण अविवेक छे. ज्ञान दर्शनादिगुणो अज्ञान दर्शने घेरी लइ जे मिश्रता करी नांखी छे ते ओळखी भाव अमृतमा आव एनुं नाम विवेक छे. कहो त्यारे हवे निवेक ए केवी वस्तु ठरी?
लघु शिष्यः-अहो ! विवेक एज धर्मर्नु मूळ अने धर्म रक्षक कडेवाय छे ते सत्य छे. आत्म स्वरुपने विवेक विना
ओळली शकाय नहीं ए पण सत्य छे. ज्ञान, शील, धर्म, तत्व अने तप ए सघळां विवेक विना उदय पामे नहीं ए आपतृ कहेवं यथार्थ छे. जे विवेकी नथी ते अज्ञानी अने
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